फ़िल्म: चित्रलेखा / Chitralekha (1964)
गायक/गायिका: लता मंगेशकर
संगीतकार: रोशन
गीतकार: साहिर लुधियानवी
अदाकार: अशोक कुमार, प्रदीप कुमार, मेहमूद, मीना कुमारी
आली री, रोको ना कोई, करने दो मुझको मनमानी
आज मेरे घर आये वो प्रीतम जिनके लिये सब नगरी छानी
आज कोई बँधन ना भाये, आज है खुल खेलन की ठानी
ए री जाने न दूँगी, ए री जाने न दूँगी
मैं तो अपने रसिक को नैनों में रख लूँगि
पलकें मूँद मूँद, ए री जाने न दूँगी…
अलकों में कुंडल डालो और देह सुगंध रचाओ
जो देखे मोहित हो जाये ऐसा रूप सजाओ
आज सखी, ध प म रे प,
म प ध नि ध, प ध प प सा ध,
रे सा ध, प रे,
आऽऽ, आज सखी पी डालूँगी
मैं दर्शन-जल की बूँद बूँद, ए री जाने न दूँगी…
मधुर मिलन की दुर्लभ बेला यूँ ही बीत न जाये
ऐसी रैन जो व्यर्थ गवाये, जीवन भर पछताये
सेज सजाओ, ध प म रे प,
म प ध नि ध, प ध प प सा ध,
रे सा ध, प रे,
आऽऽ, सेज सजाओ मेरे साजन की
ले आओ कलियाँ गूँद गूँद
ए री जाने न दूँगी…
फ़िल्म: चित्रलेखा / Chitralekha (1964)
गायक/गायिका: मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले
संगीतकार: रोशन
गीतकार: साहिर लुधियानवी
अदाकार: अशोक कुमार, प्रदीप कुमार, मेहमूद, मीना कुमारी
छा गये बादल नील गगन पर
घुल गया कजरा साँझ ढले
देख के मेरा मन बेचैन
रैन से पहले हो गैइ रैन
आज ह्रिदय के स्वपन फले
घुल गया कजरा साँझ ढले
रूप की संगत और एकान्त
आज भटकता मन है शान्त
कह दो समय से थम के चले
घुल गया कजरा साँझ ढले
छा गये बादल नील गगन पर
घुल गया कजरा साँझ ढले
अंधियारों की चादर तान
एक होंगे दो व्याकुल प्राण
आज न कोई दीप जले
घुल गया कजरा साँझ ढले
छा गये बादल नील गगन पर
घुल गया कजरा साँझ ढले
फ़िल्म: चित्रलेखा / Chitralekha (1964)
गायक/गायिका: आशा भोंसले
संगीतकार: रोशन
गीतकार: साहिर लुधियानवी
अदाकार: अशोक कुमार, प्रदीप कुमार, मीना कुमारी
काहे तरसाए जियरा
यौवन ऋतु सजन जाके ना आए
काहे जियरा तरसाए
काहे तरसाए…
नित नित जागे ना
सोया श्रृंगार,
झनन झन झनन, नित ना बुलाए
काहे जियरा तरसाए
काहे तरसाए…
नित नित बरसे ना
रस की फुहार
सपना बन गगन, नित ना लुटाए
काहे जियरा तरसाए
काहे तरसाए…
नित नित आये न
तन पे निखार
सावन मन सुमन नित न खिलाये
काहे जियरा तरसाए
काहे तरसाए…
फ़िल्म: चित्रलेखा / Chitralekha (1964)
गायक/गायिका: मन्ना डे
संगीतकार: रोशन
गीतकार: साहिर लुधियानवी
अदाकार: अशोक कुमार, प्रदीप कुमार, मेहमूद, मीना कुमारी
लागी मनवा के बीच कटारी
कि मारा गया ब्रह्मचारी, हाय
कैसी ज़ुल्मी बनायी तैने नारी
कि मारा गया ब्रह्मचारी
ऐसा घुँघरू पायलिया का छनका
मोरी माला में अटक गया मनका
मैं तो भूल प्रभू,
मैं तो भूल प्रभू सुध-बुध सारी
कि मारा गया ब्रह्मचारी…
कोई चंचल कोई मतवाली है
कोई नटखट, कोई भोली-भाली है
कभी देखी न थी, हाय
कभी देखी न थी ऐसी फुलवारी
कि मारा गया ब्रह्मचारी…
बड़ी जतनों साध बनायी थी
मेरी बरसों की पुण्य कमायी थी
तैने पल में, हाय,
तैने पल में भसम कर डारी
कि मारा गया ब्रह्मचारी…
मोहे बावला बना गयी व की बतियाँ
मोसे कटती नहीं हैं अब रतियाँ
पड़ी सर पे, हाय
पड़ी सर पे बिपत अती भारी
कि मारा गया ब्रह्मचारि…
मोहे उन बिन कछू न सुहाये रे
मोरे अखियों के आगे लहराये रे
गोरे मुखड़े पे, हाय!
गोरे मुखड़े पे लट कारी-कारी
कि मारा गया ब्रह्मचारी…
फ़िल्म: चित्रलेखा / Chitralekha (1964)
गायक/गायिका: मोहम्मद रफ़ी
संगीतकार: रोशन
गीतकार: साहिर लुधियानवी
अदाकार: अशोक कुमार, प्रदीप कुमार, मीना कुमारी
मन रे तू काहे ना धीर धरे
वो निर्मोही मोह ना जाने, जिनका मोह करे
मन रे…
इस जीवन की चढ़ती ढलती
धूप को किसने बांधा
रंग पे किसने पहरे डाले
रुप को किसने बांधा
काहे ये जतन करे
मन रे…
उतना ही उपकार समझ कोई
जितना साथ निभा दे
जनम मरण का मेल है सपना
ये सपना बिसरा दे
कोई न संग मरे
मन रे…
फ़िल्म: चित्रलेखा / Chitralekha (1964)
गायक/गायिका: लता मंगेशकर
संगीतकार: रोशन
गीतकार: साहिर लुधियानवी
अदाकार: अशोक कुमार, प्रदीप कुमार, मेहमूद, मीना कुमारी
सन्सार से भागे फिरते हो
भगवान को तुम क्या पाओगे
इस लोग को भी अपना ना सके
उस लोक में भी पछताओगे
सन्सार से भागे फिरते हो
(ये पाप है क्या ये पुण्य है क्या
रीतों पर धर्म की मोहरें हैं) – 2
रीतों पर धर्म की मोहरें हैं
हर युग में बदलते धर्मों को
कैसे आदर्श बनाओगे
सन्सार से भागे फिरते हो
(ये भोग भी एक तपस्या है
तुम त्याग के मारे क्या जानो) – 2
तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचेता का होगा
रचना को अगर ठुकराओगे
सन्सार से भागे फिरते हो
(हम कहते हैं ये जग अपना है
तुम कहते हो झूठा सपना है) – 2
तुम कहते हो झूठा सपना है
हम जनम बिता कर जायेंगे
तुम जनम गँवा कर जाओगे
सन्सार से भागे फिरते हो
भगवान को तुम क्या पाओगे
सन्सार से भागे फिरते हो
फ़िल्म: चित्रलेखा / Chitralekha (1964)
गायक/गायिका: लता मंगेशकर
संगीतकार: रोशन
गीतकार: साहिर लुधियानवी
अदाकार: अशोक कुमार, प्रदीप कुमार, मेहमूद, मीना कुमारी
सखी री मेरा मन उलझे तन डोले
अब चैन पड़े तब ही जब उनसे मिलन हो ले
सखी री मेरा मन उलझे तन डोले…
लाख जतन करूँ ध्यान बटे न
ये रसवन्ती रैन कटे न
पवन अगन सि घोले
अब चैन पड़े तब ही जब उनसे मिलन हो ले
सखी री मेरा मन उलझे तन डोले…
साँस भी लूँ तो आँच सी आये
चंचल काया पिघली जाये
अधरों में त्रिष्णा बोले
अब चैन पड़े तब ही जब उनसे मिलन हो ले
सखी री मेरा मन उलझे तन डोले…